कहानी संग्रह >> मैं हार गई मैं हार गईमन्नू भंडारी
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मानवीय अनुभूति के धरातल पर आधारित कहानियां.....
यही सब सोचते-सोचते मैं कमरे में घुसी, तो दीवार पर लगी बड़े-बड़े नेताओं की
तस्वीरों पर नज़र गई। सबके प्रतिभाशाली चेहरे मुझे प्रोत्साहन देने लगे। सब
नेताओं के व्यक्तिगत गुणों को एक साथ ही मैं अपने नेता में डाल देना चाहती
थी, जिससे वह किसी भी गुण में कम न रहने पाए।
पूरे सप्ताह तक मैं बड़े-बड़े नेताओं की जीवनियाँ पढ़ती रही और अपने नेता का
ढाँचा बनाती रही। सुना था और पढ़कर भी महसूस किया कि जैसे कमल कीचड़ में
उत्पन्न होता है, वैसे ही महान आत्माएँ गरीबों के घर ही उत्पन्न होती हैं।
सोच-विचारकर एक शुभ मुहूर्त देखकर मैंने सब गुणों से लैस करके अपने नेता का
जन्म, गाँव के एक गरीब किसान की झोंपड़ी में करा दिया।
मन की आशाएँ और उमंगें जैसे बढ़ती हैं, वैसे ही मेरा नेता भी बढ़ने लगा।
थोड़ा बड़ा हुआ तो गाँव के स्कूल में ही उसकी शिक्षा प्रारम्भ हुई। यद्यपि
मैं इस प्रबन्ध से विशेष सन्तुष्ट नहीं थी, पर स्वयं ही मैंने परिस्थिति बना
डाली थी कि इसके सिवाय कोई चारा नहीं था। धीरे-धीरे उसने मिडिल पास किया।
यहाँ तक आते-आते उसने संसार के सभी महान व्यक्तियों की जीवनियाँ और
क्रान्तियों के इतिहास पढ़ डाले। देखिए, आप बीच में ही ये मत पूछ बैठिए कि
आठवीं का बच्चा इन सबको कैसे समझ सकता है? यह तो एकदम अस्वाभाविक बात है। इस
समय मैं आपके किसी भी प्रश्न का जवाब देने की मनःस्थिति में नहीं हूँ। आप यह
न भूलें कि यह बालक एक महान भावी नेता है।
हाँ, तो यह सब पढ़कर उसके सीने में बड़े-बड़े अरमान मचलने लगे, बड़े-बड़े
सपने साकार होने लगे,बड़ी-बड़ी उमंगें करवटें लेने लगीं। वह जहाँ कहीं भी
अत्याचार देखता, मुट्ठियाँ भींच-भींचकर संकल्प करता, उसको दूर करने की
बड़ी-बड़ी योजनाएँ बनाता और मुझे उसकी योजना में, उसके संकल्पों में अपनी
सफलता हँसती-खेलती नज़र आती। एक बार जान का खतरा मोल लेकर मैंने ज़मींदार के
कारिन्दों से भी उसकी मुठभेड़ करा दी, और उसकी विजय पर उससे अधिक हर्ष मुझे हुआ।
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